000 | 03127 a2200229 4500 | ||
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001 | RB1420 | ||
003 | IN-BhIIT | ||
005 | 20240820112929.0 | ||
008 | 240820b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788126715732 (PBK) | ||
040 | _aIN-BhIIT | ||
041 | _ahin | ||
082 |
_a891.433 _bSAH/T |
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100 |
_aSahni, Bhishma. _eAuthor _924413 |
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245 |
_6880-02 _aTamas / _cby Bhishma Sahni. |
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260 |
_aNew Delhi : _bRajkamal Prakashan, _c2023. |
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300 |
_a310 p. : _bill. ; _c24 cm. |
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520 | _aमुझे ठीक से याद नहीं कि कब बम्बई के निकट, भिवंडी नगर में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। पर मुझे इतना याद है कि उन दंगों के बाद मैंने ‘तमस’ लिखना आरम्भ किया था। भिवंडी नगर बुनकरों का नगर था, शहर के अन्दर जगह-जगह खड्डियाँ लगी थीं, उनमें से अनेक बिजली से चलनेवाली खड्डियाँ थीं। पर घरों को आग की नज़र करने से खड्डियों का धातु बहुत कुछ पिघल गया था। गलियों में घूमते हुए लगता हम किसी प्राचीन नगर के खंडहरों में घूम रहे हों। पर गलियाँ लाँघते हुए, अपने क़दमों की आवाज़, अपनी पदचाप सुनते हुए लगने लगा, जैसे मैं यह आवाज़ पहले कहीं सुन चुका हूँ। चारों ओर छाई चुप्पी को भी ‘सुन’ चुका हूँ। अकुलाहट-भरी इस नीरवता का अनुभव भी कर चुका हूँ। सूनी गलियाँ लाँघ चुका हूँ। पर मैंने यह चुप्पी और इस वीरानी का ही अनुभव नहीं किया था। मैंने पेड़ों पर बैठे गिद्ध और चीलों को भी देखा था। आधे आकाश में फैली आग की लपटों की लौ को भी देखा था, गलियों-सडक़ों पर भागते क़दमों और रोंगटे खड़े कर देनेवाली चिल्लाहटों को भी सुना था, और जगह-जगह से उठनेवाले धर्मान्ध लोगों के नारे भी सुने थे, चीत्कार सुनी थी। | ||
650 |
_aHindi novel. _917397 |
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880 |
_6100-02 _aतमस / _cभीष्म साहनी के द्वारा। |
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942 | _cRB | ||
999 |
_c14245 _d14245 |